दृष्टिहीनता अभिशाप नहीं प्रकृति का दिया अनुपम उपहार है

दृष्टिहीनता अभिशाप नहीं प्रकृति का दिया अनुपम उपहार है, जिससे कभी हताश और निराश नहीं होने वाले एक नवयुवक की सच्ची कहानी /घटना को अपने शब्दों के माध्यम से व्याख्या कर रही हूं।

इनकी व्याख्या करना उतना ही कठिन है ….जितना सहज है कुदरत के इस नाइंसाफी को अनुपम उपहार की उपमा देना……!
मैं बात कर रही हूं दिनेश चौहान की जो रामदेवरा ग्राम निवासी राजस्थान से ताल्लुक रखते हैं। दिनेश चौहान छठवें वर्ग तक अपने क्षेत्र के नजदीकी प्राइवेट स्कूल में शिक्षा ग्रहण किए हैं। इस शिक्षा के दौरान उनकी अभिरुचि चित्रकारी में थी बचपन से ही उनका शौक रहा की चित्रकारी के क्षेत्र में अपने आप को एक ऊंचे लक्ष्य तक ले जाएंगे लेकिन अचानक कुदरत के न्याय और अन्याय की तराजू में तोले जाने वाले दिनेश की आंखें सन 2005 में 11 वर्ष की अवस्था में चली जाती है इसके पहले यानी जब आंखें थी तो ये जिस व्यक्ति को भी सामने से देखते थे हूबहू उनका सफल चित्रण करने में माहिर कलाकार थे।
लेकिन आंखों की रोशनी अचानक रात को सिर में भयंकर दर्द हुआ और सुबह तक कुछ भी दिखाई नहीं देना, सोचकर ही दिल दहल जाता है। कितना कष्टकारी लगा होगा जिसकी परिकल्पना भी कर पाना असंभव है 11 वर्ष की अवस्था में दृष्टिबाधित दिनेश हताश मन से 8 वर्षों तक खामोश रहे,
प्राकृतिक और अपने मन का सामंजस्य कायम रखने में लगे रहे संघ 19 जुलाई 2013 में जोधपुर के एक आकाशवाणी केंद्र से जुड़ गए भारत के विभिन्न आकाश वाणी केद्रों को पत्र भी लिखे,,, समन्नित भी हुए।

जोधपुर के पूर्व उद्घोषक गोविंद त्रिवेदी इनके प्रेरणास्रोत रहे। जिनकी संगति में यह प्रगति की दिशा में बढ़ने लगे गोविंद त्रिवेदी जी के नेतृत्व में एक सांस्कृतिक आयोजन हुआ था जिसमें दिनेश को विशेष रूप से सम्मानित किया गया उत्साह की आंधी में बहते हुए दिनेश राजनीतिक विज्ञान से M.A. की पढ़ाई कर रहे हैं इनको राज्य सरकार की योजना के अनुसार दिव्यांग पेंशन योजना का लाभ मिलता है, जिसका 100% खर्च पशु पक्षियों की आहार आवास तथा प्राकृतिक पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने की दिशा में खर्च कर देते हैं विभिन्न क्षेत्रों में जाकर अपने जन्म दिवस के दिन या महापुरुषों की जयंती के मुख्य अवसरों पर वृक्षारोपण का कार्य करना तथा वृक्षों की सेवा में अपना विशेष योगदान देते हैं आधुनिक दौर में दृष्टि के होने के बावजूद लोग प्रकृति की सुंदरता को नहीं देख पाते दृष्टि बाधित होने के बाद भी दिनेश प्राकृतिक हरे भरे पौधों की परिकल्पना करते हैं स्वच्छ एवं साफ हवा लोगो को प्रात हो इसके लिए पेड़ पौधे लगाना जिससे प्राप्त ऑक्सीजन को मनुष्य के निरोगी रहने की दिशा में कार्य करते हैं।

जिनका मानना है कि मौत सत्य है जीवन मिथ्या….।

इसीलिए अच्छे कर्मों से सबका भला करना ही परम उद्देश्य है इतने उत्कृष्ट विचारों के धनी दिनेश से मेरी संवाद एक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह के माध्यम से हुआ जो हम सब के लिए प्रेरणादायक हैं।

इनका ख्वाब ही अनूठा है जन क्रांति से हरित क्रांति की ओर जाना है।
जन कल्याण के लिए इतनी गहरी सोच रखने वाले व्यक्ति के मन में इतनी परम शांति का अनुभव ऐसा लगता है जैसे ईश्वर द्वारा निर्मित वास्तव में यह अनुपम व्यक्ति हैं जो सकल मानव जाति के लिए प्रेरणा है।
पशु पक्षी इत्यादि के प्रति सेवा भाव से जीते रहे हैं प्राकृत से इतना प्रेम करने वाले व्यक्ति को किस नाम की उपमा दी जाए,,, जहां तक मुझे लगता है ईश्वर के द्वारा रचित इस व्यक्ति का मंतव्य जितना ऊंचा है उतना ही ऊंचा उनका उद्धार हो।

शारीरिक रूप से अपंग व्यक्ति को भी इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए नियति के नियम से कोई भी परे नहीं है, इसके बावजूद भी विपरीत परिस्थितियों में एक मिसाल कायम करने के लिए हिम्मत और हौसला जुनून उत्साह की जरूरत होती है जो खूब इनमें है ऐसे व्यक्ति के लिए जीवन में यदि सेवा का मौका मिले तो हम सब को अवश्य करना चाहिए।

एक बार पुनः मैं इस तथ्य को दोहराता हूं कि दिनेश मनुष्य के लिए ही नहीं मनुष्यता के लिए भी प्रेरणा है।
प्रकृति द्वारा निर्मित दृष्टिबाधित पुरुष नहीं नयनसुख व्यक्ति हैं ….!

नेत्रहीनता मंजिल पाने की दिशा में बाधा नहीं संघर्ष की लंबी चौड़ी सीढ़ी है जिसे पार करने के बाद अत्यंत सुकून मिलता है।

आप सबको ऐसा न लगे इसलिए मैं बता दूं कि नयनसुख उपहास स्वरूप वर्णन नहीं वरन उपहार स्वरूप दिया जाने वाला एक नाम है जिसका कारण है दृष्टिहीनता के बावजूद भी प्रकृति को सुंदर हरा भरा स्वच्छ निर्मल बनाए रखने की सोच जो सराहनीय है वंदनीय है।

लेखक : – ज्योति किरण
गोपालगंज बिहार

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