मृत्युभोज प्रथा समाज के लिए घातक: एएसपी आर्य – बाड़मेर/सिवाना

मृत्युभोज प्रथा समाज के लिए घातक एएसपी आर्य

अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक आर्य की पहल से सिवांसी पट्टी सरगरा समाज के 48 गांवों ने छोड़ा मृत्युभोज

बाड़मेर/सिवाना ( कानु सोलंकी )। समाज में सामाजिक रीति-रिवाजों का भी एक खास महत्व होता है लेकिन धीरे-धीरे अब समाज में बुराइयों को दूर करने के लिए सामाजिक संगठनों के साथ समाज की बैठकों में अब कुछ बुराइयां खत्म होती हुई दिखाई दे रही हैं। समाज की सबसे महत्वपूर्ण बुराई थी मृत्युभोज यानी घर में कोई आदमी मर जाए तो उसके बाद में पूरे गांव को भोज करवाना जरूरी होता है। उसी पर रोक लगाने के लिए सरगरा समाज ने एक नया कदम उठाते हुए एक संदेश देते हुए कहा है कि मृत्यु के बाद में मृत्युभोज नहीं किया जाए बल्कि शोक संतृप्त परिवार को संबल प्रदान किए जाए। बालोतरा हाल पोकरण अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक नितेश आर्य के विशेष मार्गदर्शन में गत 19 मई को बाड़मेर जिले में सरगरा समाज विकास सेवा समिति सिवांसी पट्टी द्वारा 48 गांवों की मोकलसर सरगरा समाज के मंदिर में समाज की ऐतिहासिक बैठक आयोजित हुई, जिसमें एएसपी नितेश आर्य की अध्यक्षता में बैठक आयोजित हुई। बैठक में समाज के युवावर्ग, कर्मचारियों और पंच पटेलों ने सार्वजनिक रूप से समाज में मृत्युभोज प्रथा को बंद करने का ऐतिहासिक फैसला लिया। वही मौजूद समाज के सभी लोगो ने सर्वसहमति जताई कि आज के बाद किसी आदमी की मृत्यु होने के उपरांत बाहरवें दिन पर मृत्युभोज (मिठाई, हलवा, लापसी) नहीं बनाई जाएगी तथा गंगा प्रसादी का आयोजन नहीं किया जाएगा। साथ ही उनके पीछे किसी भी बच्ची की शादी नहीं होगी।

इसी बात को कायम रखते हुए बुधवार को सिवाना उपखंड के मिठौड़ा निवासी स्वर्गीय अणची देवी धर्मपत्नी गेपाराम सरगरा की मृत्यु के उपरांत उनके पीछे आज 12 दिन पर सभी पंचगण, सरगरा ज़माज विकास सेवा समिति के पदाधिकारी व सदस्य गणों सहित सभी समाज बंधुओं के अथक प्रयास से समाज की मीटिंग की बात को कायम रखते हुए मृत्यु भोजन (मिठाई, हलवा, लापसी) नहीं बनाकर केवल सब्जी रोटी बनाई गई। इस कार्यक्रम में एएसपी नितेश आर्य का समाज द्वारा साफा पहनाकर बहुमान किया गया। वही समाज में मृत्यु भोज बंद करने तथा शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ावा देने मे विशेष भूमिका अदा करने पर समस्त समाज के निवेदन पर एएसपी आर्य द्वारा सक्रिय कार्यकर्ता हुकमाराम सरगरा मोकलसर का साफा पहनाकर बहुमान किया। साथ ही समाज द्वारा मृत्यु भोज बंद करने तथा समाज में शिक्षा के विकास को बढ़ावा देने बाबत समाज ने सहमति दी। इस दौरान कार्यक्रम में 48 गांवों के सरगरा समाज के सभी पंचगण, युवा साथी, सरगरा समाज विकास सेवा समिति के अध्यक्ष सकाराम सहित पदाधिकारी तथा सैकड़ों की तादात में युवा मौजूद रहे।

मृत्युभोज प्रथा समाज के लिए घातक:-
श्रदांजलि सभा मे मौजूद एएसपी आर्य ने मृत्यु भोज बंद के इस ऐतिहासिक निर्णय पर सरगरा समाज के पंच गणों व सभी समाज बंधुओं का आभार व्यक्त करते हुए बताया कि समाज में मृत्युभोज प्रथा समाज के लिए घातक है। राजस्थान मृत्युभोज अधिनियम 1960 की अनुपालना में मृत्यु भोज को निषेध करना चाहिए। समाज में मृत्युभोज निषेध के तहत गंगा प्रसादी, मोसर एवं मृत्यु पर किया जाने वाला भोज पूर्ण रूप से प्रतिबंध करना चाहिए। साथ ही बताया कि सामाजिक कुरूतियो में फिजूल खर्ची न करके शिक्षा के क्षेत्र में खर्च करके समाज को आगे बढ़ाया जा सकता है। वही कानूनी जानकारी देते हुए बताया कि अगर कोई समाज बंधु मृत्यु भोज करते हुए या आयोजन करते हुए पाया जाता है तो वह व्यक्ति स्वयं गुनाहगार माना जाएगा। मृत्युभोज करना, दबाव डालना, सहयोग करना भी अपराध की श्रेणी में आता है, जिसके लिए एक वर्ष की सजा और एक हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों सजा हो सकती हैं। वही बताया कि अपने आसपास किसी के मृत्यु के 12 वें दिन पर मृत्युभोज हो रहा है, तो आप उसकी सूचना सरपंच, पटवारी, तहसीलदार, उपखंड अधिकारी को दे सकते हैं।

समाज की फिजूल खर्ची बंद हो जाएगी:-

नर्सिंग ऑफिसर जगदीश हिंदल ने बताया कि समाज में मृत्युभोज जैसी कृप्रथा को पूरी तरह से बंद करने में समाज का निर्णय बहुत ही सराहनीय है। यह निर्णय अन्य समाजों के लिए भी प्रेरणा दायक रहेगा और समाज की फिजूल खर्ची बंद हो जाएगी। अगर पूर्वजों के पीछे खर्चा करना ही चाहते हो तो समाज के हित में खर्च करें। जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य और सभा भवन पर खर्च करें। मृत्युभोज करना ही नहीं बल्कि उसे खाना भी गलत है। यह जो रुपये सामाजिक सरोकार के रूप में खर्च करना चाहिए। मृत्युभोज में गरीब परिवार सामाजिक परम्परा के कारण जमीन, जायदाद और गहने गिरवी रखकर मृत्युभोज करता है, जो बिलकुल गलत है।

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