साहित्य और संस्कृति के बिना पत्रकारिता अधूरी – अनिल सक्सेना

बाड़मेर 6 जनवरी। राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम के तत्वावधान में शनिवार को स्थानीय कैलाश इंटरनेशनल होटल में भारतीय साहित्य और संस्कृति और मीडिया विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई।

  • भारतीय संस्कृति बहुत वृहद है जीने के लिए इसमें सामंजस्य जरूरी – अतिरिक्त जिला पुलिस अधीक्षक
  • भारतीय साहित्य और संस्कति और मीडिया विषय पर परिचर्चा सम्पन्न
साहित्य और संस्कृति के बिना पत्रकारिता अधूरी - अनिल सक्सेना

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार अनिल सक्सेना ने कहा कि साहित्य और संस्कृति के बिना पत्रकारिता अधूरी है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से समाज की दूसरी संस्थाओं में परिवर्तन आया है उसी तरह साहित्य और संस्कृति और मीडिया में भी परिवर्तन आया है।

सक्सेना ने कहा कि राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम के माध्यम से प्रदेश के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में समाज के विभिन्न घटकों से परिचर्चाऐं आयोजित कर उनमें समन्वय स्थापित करते हुए आज बाड़मेर विधानसभा क्षेत्र के बुद्धिजीवियों से रूबरू हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि जीवन में सीखना अनवरत चलता रहता है। भारतीय साहित्य और संस्कृति और मीडिया में अटूट संबंध है इन्हें कभी भी अलग नहीं किया जा सकता। इन तीन घटकों में पढ़ना बहुत आवश्यक है यदि हम किताबों को पढ़ेंगे नहीं तो आगे बढ़ना संभव नही है। आजादी से पहले पत्रकारिता के मिशन का एकमात्र उद्देश्य था आजादी का लेकिन 1947 के बाद से समाज में जागरूकता स्थापित करते हुए समाज साहित्य और संस्कृति का विकास एक मिशन बनकर सामने आया है। सक्सेना ने कहा कि हमारी संस्कृति अक्षुण्ण है और इस पर समय की कितनी ही मार क्यों न पड़े उसे कोई क्षति नहीं पहुंचा सकता है। हम आधुनिकता का बहाना बनाकर अपनी संस्कृति को बुरा भला नहीं कह सकते हैं क्योंकि हमारी संस्कृति में हमारे जीवन का मूल आधार है।

साहित्य और संस्कृति के बिना पत्रकारिता अधूरी - अनिल सक्सेना

समारोह में मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए अतिरिक्त जिला पुलिस अधीक्षक सत्येंद्रपाल सिंह ने कहा कि भारतीय संस्कृति बहुत वृहद और प्राचीन है। सिंधु घाटी सभ्यता और हड़प्पा सभ्यता हमारी संस्कृति के महत्वपूर्ण घटक है। वर्तमान समय में मीडिया की बात करें तो मीडिया इस परिपेक्ष में बहुत नया है, बदलते समय में व्यक्ति को जीवन में सफल होने के लिए व्यवहारिकता और परिवर्तन बहुत ही आवश्यक है। जीवन में समन्वय नहीं होगा तो जीवीकोपार्जन में भी कठिनाई आएगी। उन्होंने कहा कि बाड़मेर में इस तरह की परिचर्चाओं में बुद्धिजीवियों को सम्मिलित करने से समाज को एक नई दिशा मिलेगी।

इससे पूर्व मंचासीन अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के तस्वीर के समक्ष दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। मंचासीन अतिथियों का शहर के गणमान्य नागरिकों द्वारा माल्यार्पण कर अभिनंदन किया गया।
स्वागत उद्बोधन में वरिष्ठ पत्रकार दुर्ग सिंह राजपुरोहित ने कहा कि राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम का गठन 2010 में हुआ था। उसके बाद निरंतर इस संस्थान ने सामाजिक सरोकारों के तहत साहित्यकारों कलाकारों और मीडिया के विभिन्न घटकों के बीच संबंध स्थापित करने का सराहनीय कार्य किया है। राजपुरोहित ने कहा कि 2022 के बाद से अब यह फोरम प्रत्येक विधानसभा में बुद्धिजीवियों से रूबरू होता है। यह संस्था एक मिशन के रूप में कार्य करता है और इस मिशन का मुख्य उद्देश्य समाज के मुख्य स्तंभों में सामंजस्य स्थापित करना है।

साहित्य और संस्कृति के बिना पत्रकारिता अधूरी - अनिल सक्सेना

परिचर्चा को आगे बढ़ते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर बी डी तातेड़ ने कहा कि हम लोग इन साहित्य और संस्कृति और पत्रकारिता को कैसे जिंदा रखते हैं और आने वाली पीढ़ी को कैसे हस्तांतरित कर सकते हैं इस मुद्दे पर बात होनी चाहिए। साहित्यकार वह है जो सत्ता की व्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाता है और यही सरोकार पत्रकार का भी होना चाहिए। डॉक्टर तातेड़ ने कहा की संस्कृति अर्थात संस्कार हमें पीढ़ी दर पीढ़ी प्राप्त हो रहे हैं जिनका अब धीरे-धीरे हास हो रहा है। लॉर्ड मैकाले ने भारतीय शिक्षा और संस्कृति को बहुत क्षति पहुंचाई है। हमारी प्राचीन संस्कृति में हमारे गुरुओं ने हमें अस्त्र और शास्त्र दोनों की शिक्षा दी है। आधुनिक युग में यह शस्त्र अब तकनीकी कौशल है जिसकी सहायता से हम जमाने में आगे बढ़ सकते हैं। परिचर्चा के अगले चरण में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आदर्श किशोर ने कहा कि संस्कृति जीवंत है और हमारी संस्कृति में धैर्य एक मुख्य घटक है। हमारे मूल्यों को महत्व देना ही हमारा संस्कार है। समय के साथ चलते-चलते हमें मूल्यों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार धर्म सिंह भाटी ने कहा कि पत्रकारिता समाज में एक अपना अलग महत्व रखता है। पत्रकार और राजनीति की स्थिति समाज में गंभीरता से ली जाती थी जो अब नहीं है। वर्तमान में हर व्यक्ति अपने आप में एक पत्रकार है सबके पास मोबाइल फोन है और इसका दुष्परिणाम हम सब देख रहे हैं। वर्तमान का दौर संक्रमण का दौर है इससे बाहर निकालने की जरूरत है। पत्रकार सुरेश जाटोल ने मीडिया की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।

साहित्य और संस्कृति के बिना पत्रकारिता अधूरी - अनिल सक्सेना

समाजसेवी प्रदीप राठी ने परिचर्चा को आगे बढाते हुए कहा कि आजकल कोई पढ़ना नहीं चाहता है। शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन बहुत जरूरी है हमें अपनी दिशा निर्धारित करनी पड़ेगी। प्रबुद्ध जन आगे आए और संस्कारों को पुनर्स्थापित किया जाए। रामकुमार जोशी ने कहा कि भारत पर सांस्कृतिक आक्रमण हो रहे हैं पश्चिमी मीडिया हमारी छवि को धूमिल करने का षड्यंत्र रच रहा है। उन्होंने कहा कि महिलाएं हमारे परिवार की धुरी थी और इस धुरी को तोड़ने का प्रयास वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने किया और महिलाओं को नौकरी में धकेल गरीब लोगों को नौकरी का लालच देकर हमारे परिवारों के संस्कृति को नष्ट किया गया। इस अवसर पर कवि मुकेश अमन ने कहा कि विकास मनुष्य की नियति है हम सब विकास चाहते हैं। वर्तमान साहित्य में मनुष्य क्या चाहता है। आज की पीढ़ी क्या चाहती है इस पर भी कुछ लिखा जाए। यथार्थवादी लेखन में ही लिखने की सार्थकता सिद्ध होगी। इस अवसर पर कवियित्री ममता शर्मा ने कविता सुनाकर सरोबार कर दिया। शर्मा ने कलम प्रकट कर देती है मन के छुपे घाव को शीर्षक कविता सुनाई और अपनी बात रखी।

संस्कृति कर्मी ओम जोशी ने परिचर्चा को आगे बढाते हुए कहा कि वर्तमान समय में साहित्य और संस्कृति और पत्रकारिता में तकनीक का सदुपयोग हो तब तक ठीक है। तकनीक इन तीनों घटकों पर हावी हो रही है इससे मानव जाति की निजता पर खतरा है। उन्होंने कहा कि साहित्य पत्रकारिता और संस्कृति के लोग सच बोलने से डरें नहीं। बुराइयों और झूठ की आलोचना करना इन तीनों वर्गों का प्रमुख नैतिक उत्तरदायित्व होना चाहिए। समय के साथ हम हर विषय पर हां में हां मिला लेते हैं यह समाज के लिए बहुत घातक है। जोशी ने प्रेमचंद मोहन राकेश और धर्मवीर भारती की कलाकृतियों का उदाहरण देते हुए कहा कि यह कलाकृतियां इसलिए आज भी पढ़ी जाती है क्योंकि इनमें यथार्थवादिता थी। नरसिंह जी नगर ने कविता सुनाते हुए कहा कि सत्य बोलना लोगों ने बंद कर दिया है। वाह वाही और अर्थ वृद्धि को स्वीकार कर लिया है इसका दुष्परिणाम सामने आने लग गया है। पत्रकार अक्षय दान बारहठ ने कहा कि पत्रकारिता में सच लिखकर लोगों के सामने लाना हमारा प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए। झूठ और वाह वाही के लालच में आकर हम अपनी कलम को सिद्ध करने की कोशिश करते हैं यह बहुत गलत है। उन्होंने कहा कि बाड़मेर के कई पत्रकारों ने अपने करियर को दांव पर रखकर भी सच को सामने लाया है।

इस अवसर पर राजस्थान साहित्य अकादमी के सहयोग से प्रकाशित अनिल सक्सेना के कहानी संग्रह आख्यायिका का विमोचन मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। परिचर्चा के अंत में प्रवीण बोथरा द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। इस अवसर पर कवियित्री नीलम जैन ममता शर्मा गौतम चमन गुलाम मोहम्मद तनेराज सिंह अबरार मोहम्मद डॉ. गोरधन सिंह जहरीला कमल शर्मा अजय नाथ कमल किशोर सिंघल दीपसिंह भाटी रफीक मोहम्मद श्रवण जाटोल सहित अनेक साहित्यकार पत्रकार और संस्कृतिकर्मी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन हरीश जांगिड़ ने किया।

Share This Article
Leave a comment